भारत और भारत के लोगों के पास सब कुछ है l रोटी, कपड़ा, मकान, पैसा और जरूरत की
सारी चीजेंl आज अगर दुनिया में स्वर्ग है तो यहीं है l तभी फ़ोन की घंटी बजी और
मेरी नींद टूट गई और मैंने अपने को २०११ के भारत में पायाl ऊपर की लाइन पढने
में या सपने में देखने के लिए तो ठीक है पर इसके पीछे कितनी कुर्बानी,
लगन और मेहनत की जरुरत पड़ेगी इसका अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है l
किसी देश को सुपर पवार बनने के लिए कुछ बुनियादी सुविधाओं की जरुरत होती है
मसलन सड़क, बिजली, पानी, और देश के नागरिकों को रोटी, कपड़ा और मकान, जिस देश
में ये चीजें पर्याप्त हैं वे विकसित कहलाते हैं और आज वही सुपर पावर हैं l
परन्तु इन चीजों को पाने के लिए जरुरत होती है आय की और हमारे देश की आय का
बड़ा हिस्सा तो काले धन के रूप में दूसरे देश में जमा है
और आज भी होता जा रहा है l तो आखिर हम तरक्की कैसे करें ?
बाकी बचे पैसे जिससे विकास हो रहा है उनका प्रबंधन इतना ख़राब है कि इसे कोई भी
इन्सान पैसे के बर्बादी ही कहेगा ! सड़क बनती है और अगले महीने सीवर बिछाने के
लिए फिर से तोड़ दी जाती है और फिर बनायी जाती है, अगर इससे भी मन नहीं भरा तो
टेलीफोन विभाग वाले आकर गढ्ढा कर जाते हैं,
और टूटी हुई सडकें फिर बनायी जाती हैं,
ये अंतहीन सिलसिला समय के चक्र के साथ चलता रहता है l
आज भारत की आज़ादी के ६ दशक बीत चुके हैं उस हिसाब से देखा जाये तो यह आज की
महाशक्ति यूनाईटेड स्टेट ऑफ़ अमेरिका के आज़ादी के २२ दशक (जुलाई ४, १७७६) से
कहीं कम है और भारत ने इन छः दशकों में जो पाया है वो बेशक अमेरिका या किसी और
देश से अधिक है पर हमने जो खोया है वो भी अमेरिका या किसी और देश से कहीं
ज्यादा है वो है ईमानदारी l हम भारतवासी स्विस बैंक में धन जमा करने के मामले
में $ १,४५६ बिलियन के साथ दुनियाँ में पहले स्थान पर हैं
जिसकी सूचि में शीर्ष पाँच में अमेरिका का नाम नहीं है l
भारत की तुलना अमरीका से की जाती है और हम भी उन ख्वाबों में डूबे हुए नज़र आते
हैं जो हमारे अर्थशास्त्री दिखाते हैं और उसके पीछे अगर कोई सबसे ज्यादा दौड़ते
हुए नज़र आतें है तो वो है हमारे देश के नेता, उन्हें ये खवाबों की दुनिया
इतनी सजीव लगती है कि वो इसे चुनाव में भी भुनाते नज़र आते हैं, पर जो मुख्य
बाते हैं वो ना तो हम समझते हैं और ना ही हमें समझने दिया जाता है l
अमेरिका के सारे पैसे उसके ही देश में निवेशित होते हैं और तो और
वे बाहरी देशों से भी व्यापार के रूप में धन जमा करते हैं, काला धन भी उन्होंने
वापस मंगा लिया है, उनके यहाँ कोई सीमा विवाद नहीं है जबकि हमारे देश ने आज़ादी
के बाद से कई प्रत्यक्ष और परोक्ष लड़ाइयाँ देखी हैं l पाकिस्तान तथा चीन के
साथ सीमा विवाद आज भी जारी हैं एक तरफ जहाँ पाकिस्तान कश्मीर को अपने देश का
हिस्सा मानता है वहीं पूर्व में चीन अरुणाचल प्रदेश को अपने देश के नक़्शे में
दिखता हैं और इन दोनों विवाद के पीछे हमारे देश को सुरक्षा के रूप में धन का एक
बड़ा हिस्सा खर्च करना पड़ता है l अगर हमें अपने आप को महाशक्ति के रूप में
देखना है तो सीमा विवाद को जल्द से जल्द ख़त्म करना होगा ताकि इन रुपयों का
इस्तेमाल देश के आंतरिक विकास में किया जा सके l
अगर इतिहास के पन्नो में झांकें तो विश्व युद्ध की समाप्ति और देश की आज़ादी के
बाद दुनिया दो पाले में खड़ी थी तब जवाहरलाल नेहरु ने बीच का रास्ता अपने हुए
गुटनिरपेक्ष होने का रास्ता चुना क्यूंकि वे जानते थे की भारत एक ग़ुलामी से
अभी-अभी निकला है अगर कोई ग़लत फैसला हुआ तो देश फिर से ग़ुलाम हो जायेगा l आज
अमेरिका अगर भारत को कोई हथियार उपलब्ध करता है तो कुछ दिन बाद वो उसका
परिष्कृत रूप पाकिस्तान को बेचता है
जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बना रहे और उसका हथियार बेचने का काम चलता रहे l
भारत अगर अपने को विश्व महाशक्ति के रूप में स्थापित करना चाहता है तो उसे
पाकिस्तान के साथ की जरूरत पड़ेगी साथ ही साथ पाकिस्तान को भी खुद को ऊपर उठाने
के लिए भारत की जरूरत पड़ेगी, कारगिल जैसे युद्ध, आतंकवाद तथा सीमा विवाद को
बिलकुल ख़त्म करना होगा l सीधे शब्दों में कहा जाये तो भारत को पाकिस्तान के
साथ की ज्यादा जरूरत है और अगर पाकिस्तान का पूर्ण सहयोग मिला तो भारत अनुमान
के आधे से भी कम समय में सुपर पवार बन सकता है l
जहाँ तक तकनिकी क्षेत्र का सवाल है तो हमारे यहाँ के उच्च संस्थानों से
पढ़े-लिखे छात्र अपनी प्रतिभा लेकर विकसित देशों में चले जाते हैं अगर आई आई टी
जैसे संस्थानों की बात की जाये तो सरकार हर छात्र पर लगभग २ लाख रूपये सालाना
खर्च करती है जो पूरे पाठ्यक्रम (४ साल ) में करीब ८ लाख रूपये आता परन्तु
छात्र इस पढाई का केवल एक चौथाई ही संस्थान को देता है और उस पढाई के बाद जब वो
अपनी प्रतिभा विकसित देशों को देता है तो उससे देश को क्या फायदा होता है ?
देश में आज ६५% युवा हैं जो देश का भविष्य भी हैं l इसका तात्पर्य यह कि आज के
भारत को बनाना उनके हाथ में है आज वो जो भी देश को देंगे, कल देश उन्हें ही
वापस करेगा l तो आज जरूरत है जागरूक होने की और देश के लिए काम करने की l
अपनी बात को ख़त्म करते हुए मैं यही कहना चाहूँगा कि अंतरास्ट्रीय सहयोग के
साथ-साथ भारत को आन्तरिक प्रबंधन की भी जरूरत है ताकि सभी काम सही और
सिलसिलेवार ढंग से हो l परन्तु सवाल है कि क्या हम इसके लिए तैयार हैं क्या हम
अपने काले धन को वापस लायेंगे, क्या हम ईमानदारी को अपनाएंगे और क्या देश को
आगे बढ़ने में सहयोग देंगे ? क्यूंकि देश बढ़ता है तो वहां रहने वाले लोगों का
स्तर भी बढ़ता है और अगर हमने इतना किया तो हमें सुपर पवार बनने का स्वप्न नहीं
देखना पड़ेगा, हम वास्तव में सुपर पवार बन जायेंगे l
By
Mohit Mishra
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